सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
मौलाना मो. उस्मान बरकाती ने बताया कि दीन-ए-इस्लाम में बेहद खास है माह-ए-रमज़ान। हर बालिग मुसलमान मर्द व औरत जो अक्ल वाला व तंदुरुस्त हो उस पर माह-ए-रमज़ान का रोजा रखना फर्ज है। जो मुसलमान रोजा नहीं रखता है वह अल्लाह की रहमत से महरूम रहता है। रोजा न रखने पर वह शख़्स अल्लाह की नाफरमानी करता है। रोज़ा न रखना बहुत बड़ा गुनाह है। रोजा का इंकार करने वाला दीन-ए-इस्लाम से खारिज है। माह-ए-रमज़ान बहुत ही रहमत व बरकत वाला महीना है। अल्लाह के बंदे दिन में रोजा रखते है और रात में खास नमाज तरावीह पढ़ते है। इस माह में मुसलमान कसरत से जकात, सदका, फित्रा निकाल कर गरीब, यतीम, बेसहारा, बेवाओं की मदद करते हैं।
मौलाना मो. असलम रज़वी ने बताया कि माह-ए-रमज़ान का रोजा परहेजगारी पैदा करने का बेहतरीन जरिया है। मुसलमान सिर्फ अल्लाह की रज़ा के लिए साल मे एक महीना अपने खाने-पीने, सोने-जागने के समय में तब्दीली करता है। वह भूखा होता है लेकिन खाने-पीने की चीजों की तरफ नज़र उठा कर नहीं देखता है। रमज़ान सब्र के इम्तिहान का खास महीना है। रोजा रखने से दूसरों की भूख-प्यास का अहसास होता हैं। अन्न की कद्रो कीमत भी समझ में आती हैं। मुंह के रोजे के साथ-साथ हाथ, कान, नाक, जबान व आंखो का भी रोजा होता है। रोजे की हालात मे किसी की बुराई करने व सुनने, बुरा देखने, बुरा करने से बचना चाहिए।
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