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रमजान नुजूले कुरआन का महीना।

जियाउल मुस्तफ़ा निज़ामी

चेयरमैन आल इंडिया बज्मे निजामी

संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश।

साल और महीनों में कुछ ऐसे अय्याम आते हैं जिनके साथ पूरी कायनात का मुकद्दर वाबस्ता होता है ऐसा ही दिल पज़ीर लम्हा वह था जब गारे हिरा में हिदायते खुदावंदी की आखिरी किरण दाखिल हुई और नबी करीम सल्लल् अलैहि वसल्लम इसके अमीन व हामिल वने, इस अजीम लम्हा का अमीन है माहे रमज़ानुल मुबारक, रोज़ों और तिलावते कुरआन के लिये इस महीने का इंतेखाब इसलिये हुआ है कि इस महीने की एक सुबह में सहर के वक़्त कलामे इलाही की पहली किरण ने कलबे मुहम्मदी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को रौशन व मुनव्वर कर दिया, इस मुबारक महीना की अजमत व बरकत का तमाम राज़ सिर्फ एक चीज़ में पोशीदा है वह यह कि इस महीने में कुरआन नाज़िल किया गया, यानी नुजूल शुरू हुआ पूरा लोहे महफूज़ से उतारकर जिब्राईल अमीन अलैहिस्सलाम के सुपुर्द कर दिया गया या नुजूल का फ़ैसला सादिर किया गया, यह अजीमुश्शान वाकिया इस बात का मुतकाज़ी हुआ कि इस माह के दिनों के लिये और रातों को कयाम व तिलावत के लिये मखसूस कर दिया जाये इसी बात को कुरआन करीम में अल्लाह तआला ने यूं ब्यान फ़रमाया-तरजमा : माहे रमज़ानुल मुबारक जिसमें उतारा गया कुरआन इस हाल में यह राहे हक दिखाता है लोगों को और (इसमें) रौशन दलीलें हैं हिदायत की और हक़ व बातिल में तमीज़ करने की, सो जो कोई पाए तुम में इस महीने को तो वह यह महीना रोज़े रखें।

इमाम इबने मरदूइया और अलसबहानी ने उम्मुल मुमिनीन हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ की गयी या रसूलुल्लाह रमज़ान क्या है? फ़रमाया इसमें अल्लाह तआला मोमिनीन के गुनाह जला देता है और उनके गुनाह माफ़ फ़रमा देता है पूछा गया शव्वाल क्या है? फ़रमाया इमसें लोगों के गुनाह उठाए जाते हैं पस हर गुनाह माफ कर दिया जाता है। बेहकी ने शोएबुल ईमान में हज़रत अनस रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत नकल किया है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब रजब दाखिल होता तो यह दुआ मांगते - ऐ अल्लाह हमारे लिये रजब और शाबान में बरकत डाल और हमें रमजान का महीना पहुंचा। (तफसीर दुर्रे मंसूर जिल्द १, सफा ४८३)हकीम तिर्मिज़ी (ने नवादिरुल उसूल में) 

 हज़रत अबू मसऊद अंसारी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु रिवायत नकल फ़रमाते हैं की मैंने नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से एक दिन सुना और रमज़ान का चांद निकल चुका था. इरशाद फ़रमाया। अगर बंदे जान लें जो कुछ रमज़ान की फजीलत है तो मेरे उम्मती ख्वाहिश करें कि पूरा साल रमज़ान हो।

इमाम तबरानी रिवायत करते है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया हज़रत इब्राहीम पर सहायक रमज़ान की पहली रात नाजिल हुए और मूसा अलैहिस्सलाम पर तौरेत नाजिल फ़रमाई जबकि रमज़ान की छः रातें गुज़र चुकी थीं और दाऊद अलैहिस्सलाम पर ज़वूर नाजिल फरमाई जबकि रमज़ान की बारह रातें गुज़र चुकी थीं ईसा अलैहिस्सलाम पर इंजील नाजिल फरमाई जबकि रमज़ान की अट्ठारह रातें गुज़र चुकी थीं और मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अल्लाह तआला ने कुरआन नाज़िल फरमाया जबकि रमज़ान की चौबीस रातें गुज़र चुकी थीं। (तफ़सीरे दुर्रे मंसूर जिल्द २, सफा १७४)हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा फरमाते हैं कि कुरआन रमजान में लेलतुल कद्र को यक बारगी आसमाने दुनिया की तरफ उतारा गया, फिर इसके बाद मुख्तलिफ महीनों और मुख्तलिफ अय्याम में थोड़ा थोड़ा करके उतारा गया। जब अल्लाह तआला ने जमीन में किसी काम का इरादा फ़रमाता तो उसके मुताल्लिक कुरआन नाजिल फ़रमाता, हत्ताकि इस को जमा कर दिया। (तफ़सीरे दुर्रे मंसूर जिल्द २,पेज १७५,) रब्बे करीम ने कुरआने मुक़द्दस के शुरू में वाजेह कर दिया है कि इस किताब से वही सही राह देख सकते हैं और सही राह पर चल सकते हैं जो तकवा रखते हैं दूसरी जानिब रोजे रखने का नतीजा यूं व्यान फ़रमाया ताकि तुम्हारे अंदर तक़वा पैदा हो मजकूरा दोनों आयतों को मिलाकर पढ़िये आप इस राज़ को पा लेंगे कि नुजूले कुरआन के इस महीने को रोज़ों के लिये क्यों ख़ास किया गया, इस माह की बाबरकत साआतें से ज़्यादा मोजूं वक़्त इस बात के लिये और कौन सा हो सकता था कि रोज़ा के जरिये तकवा की वह सिफ़्त पैदा करने की कोशिश की जाये जिससे कुरआन की राह आसान हो, तकव ऐ क्लब रूह, शऊर व आगही अज़्म व इरादा और अमल व किरदार की उस कुव्वत और इस्तेदाद का नाम है कि जिसकी वजह से हम हर उस चीज़ से रुक जायें जिसको हम गलत जानते और मानते हों और अपने लिये नुकसानदेह समझते हों, तक़वा बड़ी ऊंची और बेश बहा सिफ़्त है और सारी मतलूबा सिफात की जामेअ भी, जो तकवा की सिफ़्त रखते हैं इनको अल्लाह ने कुरआने करीम में दुनिया व आखिरत की तमाम भलाईयों की ज़मानत दी है मुत्तकीन ही वह हैं जिनको उस जन्नत की बशारत दी गयी है। जिस की वुसअत में जमीन व आसमान समा जायें उन्हीं से उस मग्फिरत का वादा किया गया है जो उस जन्नत की तरफ ले जाने वाली है दुनिया में भी आसमान जमीन से बरकतों के दहाने खोल देने का वादा उनसे किया गया है जो ईमान और तकवा की सिफ़्त से आरास्ता हों कुरआन करीम की आयते मुबारका है-

और अगर बस्तियों वाले ईमान लाते और तक़वा इख़्तेयार करते तो ज़रूर हम खोल देते उन पर बरकतें आसमान की और जमीन की । हम रोज़ा रखते हैं तो सुबह से शाम तक अपने जिस्म के जायज़ मुतालबात तक को तर्क कर देते हैं अल्लाह तआला की रज़ा व खुशनूदी की खातिर अपनी जायज़ ख़्वाहिशात भी कुरबान कर देते है। रात आती है तो खड़े होकर उसका कलाम सुनते हैं और एक महीना में मुकम्मल कुरआने करीम सुन लेते हैं और रोज़ा यह बात भी रासिख़ कर देता है कि असल मक़सद इताअते इलाही है। नेकी और सवाब सिर्फ अल्लाह तआला की इताअत और फ़रमां बरदारी में है रोज़ा से हमारा यह यकीन भी रासिख होता है कि जिन हकीकतों की खबर अल्लाह तआला और उसके रसूल नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दी है वह मादी व हिसी नहीं हैं वह भूक प्यास और जिंसी लज्ज़त जैसी मादी हकीकतों से कहीं ज़्यादा बाला बेश बहा और लजीज़ हैं। हम सिर्फ रोटी से नहीं जीते, आला अखलाकी मकासिद हमारी जिन्दगी के लिये नागुजीर हैं इस तरह हमारे अंदर यह कुव्वत पैदा होती है कि हम बुलंद तर रूहानी और अखलाकी मकासिद के लिये इन दुनियावी ख्वाहिशात को कुरबान कर दें, दर हकीकत इस एहसास व यकीन और इसी कुव्वत का नाम तकवा है जिसको पैदा करने के लिये रोज़ा कयाम-ऐ- लैल और तिलावते कुरआन से ज़्यादा मोवस्सिर कोई और नुस्खा नहीं और इस नुस्खा के इस्तेमाल के लिये रमजानुल मुबारक ही सबसे ज़्यादा मौजू महीना था रोज़ा और क्यामे लैल में तिलावते कुरआन दोनों को रामजान के महीने में जमा करके अल्लाह तआला ने दर असल उस तकवा के हुसूल का रास्ता हमारे लिये खोल दिया है।

रमजानुल मुबारक में कयामे, लैल और तिलावते कुरआन तकवा के हुसूल के लिये इंतेहाई कारगर नुस्खा है रमजानुल मुबारक में तरावीह की नमाज़ कयामे लैल ही के लिये है आप शुरू रात के आखिरी तिहाई हिस्सा में या वक्ते सहर में खड़े होकर कुरआन सुनते हैं यह कयामे लैल हैं कयामे लैल का दूसरा वक़्त वह है जो आधी रात का वक्त है यही वह वक़्त है जिसमें कुरआने करीम ने इस्तिगफार की ताकीद की है रमजान के महीने में थोड़ा सा एहतेमाम करके रात के इस आखिरी हिस्सा में आप कयामे लैल की बरकत हासिल कर सकते हैं और आपका शुमार मुस्तगफ़रीन बिल आमाल में हो सकता है। यह रात का वह हिस्सा है जिसके बारे में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बताया है कि अल्लाह तआला दुनिया वालों के बहुत करीब आता है और पुकारता है कौन हैं वह जो मुझसे मांगे कि मैं उसे जो मांगे दूं, कौन है जो मुझसे अपने गुनाहों की मग्फित चाहे कि मैं उसको माफ़ कर दूं (बुखारी मुस्लिम) रमज़ान में आम औक़ात के अलावा क़बूलियत के खास औकात भी हैं इनमे इफ्तार का वक़्त भी है उस वक़्त अल्लाह तआला की रहमत मुतावज्जेह होती है इसी ज़िमन में कोशिश करें कि पहले अशरा में रहमत की तलब, कसरत से करें दूसरे अशरे में मग्फिरत की और तीसरे अशरे में नारे जहन्नम से रिहाई की। नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन अशरों की यह बरकात ब्यान फ़रमाई हैं। (बेहकी)

रमज़ान में शबे क़द्र वह मुबारक रात है जिसमें कुरआने करीम नाज़िल हुआ, यह रात अपनी कद्र व कीमत के लिहाज़ से हज़ारों महीनों से बेहतर है जो इस रात कयाम करे उसके सारे गुनाहों की मगफिरत की बशारत दी गयी है। हर रात की तरह इस रात में भी उस घड़ी में दुआयें कबूल की जाती हैं (मुस्लिम) अगर आप इस रात के ख़ैर से महरूम हैं तो इससे बड़ी बदकिस्मती और कोई नहीं हो सकती (इब्ने माजा)

आम तौर पर यह समझा जाता है कि २७वीं रात है अगर इस रात कयाम और इबादत का एहतेमाम कर लिया जाये तो बहुत बड़ी बात होगी अहादीस से मालूम होता है कि यह आखिरी अशरे की कोई ताक रात है। यह जरूर है कि बाज़ सहाबा और सुलहा की रिवायात से 27वीं रात की ताईद होती है। इस रात के क़याम में वह तमाम ख़ैर व बरकत तो हासिल होगा ही जो किसी भी रात के कयाम से हासिल होता है लेकिन एक तरफ तो इससे आम खैर व बरकत में कई गुना इज़ाफा होता है। दूसरी तरफ मजीद खैर व बरकत के दरवाजे भी खोल दिये जाते हैं।

पूरा रमजान मुसलमानों पर अल्लाह तआला की इस खुसूसी रहमत का मज़हर है कि उसने हमारे लिये कम वक़्त और मुख़्तसर अमल में वह अजर व सवाब रखा है जो दूसरी उम्मतों को तवील मुद्दत और बहुत ज़्यादा अमल से हासिल होता है। इरशादे नबवी के मुताबिक उसकी मिसाल ऐसी है कि उम्मते मुस्लेमा के अस्र से मुग्रिव तक मेहनत करके इससे कहीं ज़्यादा मजदूरी मिलती है जितनी यहूदियों को फज से जुहर तक और ईसाईयों को जुहर से मगरिब तक काम करके मिलती है। (बुखारी)

शबे क़द्र हमारे रब की इस खुसूसी रहमत का सबसे बड़ा सबूत है कबूलियत दुआ की खुसूसी घड़ी तो हर शब आती है लेकिन शबे क़द्र में इस घड़ी का रंग ही कुछ और होता है। उसकी शान और तासीर ही जुदा होती है, वह घड़ी मालूम नहीं कौन सी हो इसलिये नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत आयशा सिद्दीका को एक मुख़्तसर मगर बहुत जामेअ दुआ सिखाई थी जो उस रात में आपने भी कसरत से मांगी (अहमद तिर्मिज़ी) मेरे अल्लाह तू बहुत माफ़ करने वाला हैं माफ करने को महबूब रखता है पस मुझको माफ़ कर दे।

इस नूरानी रात की बरकतों को पाने और नुजूले कुरआन का शुक्र अदा करने के लिये मुकम्मल तौर से यकसू हो जाये रातों को जागे, नवाफिल का ज़्यादा से ज़्यादा एहतेमाम करे कसरत से कुरआन की तिलावत करे और तसबीह व ज़िक्र में मशगूल रहे फिर खूब दुआएं करे, रोए गिड़गिड़ाए और इस बात का अहद करे कि जिस मकसद के लिये कुरआन का नुजूल हुआ था उसके हुसूल में कोई कोताही नहीं करूंगा लैलतुल कुद्र में अल्लाह के नजदीक अफ़व व दरगुज़र आम होता है इसलिये हमें अपने गुनाहों पर भी नादिम व शर्मिन्दा होना चाहिये और तौबा करना चाहिये और नुजूले कुरआन की इस नूरानी रात में यह अज़्म करें कि हम आइंदा जिन्दगी कुरआन की रहनुमाई और रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैरवी में गुज़ारेंगे ।

सच तो यह है कि इस माह का हर दिन रोज़े सईद है और इस माह की हर शब शबे मुबारक है इस माह की हर घड़ी में फैज़ व बरकत का इतना खज़ाना पोशीदा है कि नफ़्ल आमाल सालेह फ़र्ज़ आमाल के दर्जे को पहुंच जाते है । और फ़रायज़ सत्तर गुना ज़्यादा बुलंद हो जाते हैं। (बेहकी) रमज़ान का महीना आता है तो आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते हैं और रहमतों की बारिश होती है। जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते हैं और जहन्नम के दरवाज़े बंद कर दिये जाते हैं और शैतान को जंजीरों में जकड़ दिया जाता है। (बुखारी मुस्लिम)

लम्हए फिक्र यह आज हम पूरी दुनिया में परेशान हैं इसकी वाहिद वजह कुरआन और उसकी तालीमात से बेज़ारी के सिवा कुछ नहीं, मौका गनीमत है हम कुरआनी माह यानी रमजानुल मुबारक गुज़ार रहे हैं हम पर लाजमी है कि हम अहद करें कि बाकी अय्याम में कुरआन करीम को समझ कर पढ़ेंगे इसकी तालीमात पर अमल करेंगे अगर हमने ऐसा किया तो हमारी ज़िल्लत व ख़्वारी, इज्ज़त व तकरीम बदल जायेगी और अगर ऐसा न कर सके तो फिर हमें मज़ीद जलील व रुसवा होने से कोई नहीं बचा सकता।

Jr. Seraj Ahmad Quraishi
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