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माह-ए-रमज़ान में नाजिल हुआ क़ुरआन-ए-पाक।

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश। 

रमज़ानुल मुबारक का रोजा अल्लाह की फरमाबरदारी में गुजरा। मस्जिद व घरों में खूब इबादत हो रही है। दस्तरख्वान पर तमाम तरह की नेमत रोजेदारों को खाने को मिल रही है। हाथों में तस्बीह व सरों पर टोपी लगाए बच्चे व बड़े अच्छे लग रहे है। महिलाएं इबादत के साथ घर व बाजार की जिम्मेदारियां बाखूबी निभा रही हैं। तरावीह की नमाज में कहीं दस तो कहीं पन्द्रह पारे मुकम्मल हो चुके हैं। मस्जिदों में रमज़ान का विशेष दर्स जारी है। रहमत के अशरे में चंद दिन और बचे हुए हैं जिसके बाद मगफिरत का अशरा शुरू होगा। रमज़ानुल मुबारक का हर पल हर लम्हा कीमती है।

चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर के मौलाना महमूद रजा कादरी ने बताया कि रमज़ान के इस मुकद्दस महीने में कुरआन-ए-पाक नाजिल हुआ। कुरआन-ए-पाक का पढ़ना देखना, छूना, सुनना सब इबादत में शामिल है। कुरआन-ए-पाक पूरी दुनिया के लिए हिदायत है। हमें कुरआन-ए-पाक के मुताबिक बताए उसूलों पर ज़िदंगी गुजारनी चाहिए। अल्लाह के रसूल हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कुरआन-ए-पाक 23 साल में नाजिल हुआ। कुरआन-ए-पाक पर अमल करके ही दुनिया में अमर और शांति कायम की जा सकती है। माह-ए-रमज़ान में हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम पर सहीफे 3 तारीख को उतारे गए। हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम को जबूर 18 या 21 रमज़ान को मिली और हजरत मूसा अलैहिस्सलाम को तौरेत 6 रमज़ान को मिली। हजरत ईसा अलैहिस्सलाम को इंजील 12 रमज़ान को मिली। पूरा कुरआन-ए-पाक एक दफा इकट्ठा नहीं नाजिल हुआ बल्कि जरूरत के मुताबिक 23 वर्षों में थोड़ा-थोड़ा नाजिल हुआ। कुरआन शरीफ के किसी एक हर्फ लफ्ज या नुक्ते को कोई बदलने की कोशिश करे तो बदलना मुमकिन नहीं। अगली किताबें नबियों को ही जुबानी याद होती लेकिन कुरआन-ए-पाक का यह मोज़जा है कि मुसलमानों का बच्चा-बच्चा उसको याद कर लेता है।  

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Jr. Seraj Ahmad Quraishi
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