गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
कारी मोहम्मद अनस रज़वी ने बताया कि माह-ए-रमज़ान में हर दिन और हर वक्त इबादत होती है। रोजा इबादत, इफ्तार इबादत, इफ्तार के बाद तरावीह का इंतजार इबादत, तरावीह पढ़कर सहरी के इंतजार में सोना इबादत, फिर सहरी खाना भी इबादत। रमजान एक भट्टी की तरह है जैसे कि भट्टी गंदे लोहे को साफ और साफ लोहे को मशीन की पुर्जां बनाकर कीमती कर देती है और सोने को जेवर बनाकर कीमती कर देती है व सोने को जेवर बनाकर इस्तेमाल के लायक कर देती है ऐसे ही माह-ए-रमज़ान गुनाहगारों को पाक करता है और नेक लोगों के दर्जे बढ़ाता है। रमज़ान में नफ्ल का सवाब फर्ज के बराबर और फर्ज का सवाब सत्तर गुना मिलता है। हमें चाहिए कि इबादत करके अपना मुकद्दर संवारें और गुनाहों की माफी मांगें।
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