सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
जहन्नम से आजादी का अशरा चल रहा है। जहन्नम व कब्र के अज़ाब से निजात की दुआ मांगी जा रही है। ईद में चंद दिन बचे हुए हैं। रोजे में जहां खजूर की मांग हो रही है, वहीं मीठे के तौर पर सेवईयां भी इफ्तार व सहरी के समय रोजेदार इस्तेमाल कर रहे हैं। सेवईयों का बाजार नखास, घंटाघर, जाफरा बाजार आदि जगहों पर सज चुका है। जहां मोटी, बारीक, लच्छेदार के साथ कई वैरायटी की सेवईयां मौजूद हैं, जो क्वालिटी और अपने नाम के मुताबिक डिमांड में हैं। मस्जिदों मे एतिकाफ जारी है। मस्जिद व घरों में इबादत व क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत की जा रही है। रमज़ान का विशेष दर्स भी दिया जा रहा है।
नायब काजी मुफ्ती मो. अजहर शम्सी ने कहा कि सभी जानते हैं कि रमज़ान माह के ठीक बाद शव्वाल माह की पहली तारीख को ईद मनाई जाती है। रमज़ान की पहचान रोजा रखने और रोजों की पहचान सुबह सादिक से लेकर सूरज डूबने तक भूखा-प्यासा रहना माना जाता है, लेकिन रोजे रखने के पीछे का उद्देश्य हम जानेंगे तो पाएंगे कि यह सोशलिस्ट समाज के काफी करीब है। एक ऐसा समाज जो न सिर्फ इंसानियत की बात करता है, बल्कि उसके रास्ते में आने वाली मुश्किलों को प्रायोगिक तौर पर खुद के ऊपर आजमाता है। जकात अदा करने के पीछे का सही मकसद यह है कि आपकी दौलत पर आपके आसपास के उन तमाम लोगों का हक है, जो गरीब और बदहाल हैं उनकी जरूरत पूरी हो।
मुफ्ती-ए-शहर अख़्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुनिया को अल्लाह की इबादत का संदेश देकर जहालत को दूर करने का पैग़ाम दिया। दीन के अरकान की तीसरी कड़ी बना रोजा। दीन-ए-इस्लाम में होश संभालने से लेकर मरते दम तक अल्लाह के कानून और उसके हुक्मों के मुताबिक ज़िंदगी गुजारना इबादत है। जिस तरह हम रोज़े में खाने-पीने और अन्य कामों से अल्लाह के हुकूम की वजह से रुके रहते हैं इसी तरह हमारी पूरी ज़िन्दगी अल्लाह के अहकाम के मुताबिक़ होनी चाहिए। हमारी रोज़ी रोटी और हमारा लिबास हलाल कमाई का हो। हमारी ज़िन्दगी का तरीक़ा पैगंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा किराम वाला हो ताकि हमारी रूह हमारे जिस्म से इस हाल में जुदा हो कि हमें, हमारे वालिदैन और सारे इंसान, जिन्नात, फरिश्ते और सारी मखलूक का पैदा करने वाला अल्लाह हमसे राजी व खुश हो। दारे फानी से दारे बक़ा की तरफ कूच के वक़्त अगर हमारा अल्लाह हमसे राज़ी व खुश है तो इंशाअल्लाह हमेशा-हमेशा की कामयाबी हमारे लिए मुक़द्दर होगी कि इसके बाद कभी भी नाकामी नहीं है।
कारी मोहम्मद अनस रजवी ने कहा कि रमज़ान माह में प्रत्येक इंसान हर तरह की बुराइयों व गुनाहों से खुद को बचाता है। रमज़ान की रातों में एक रात शबे कद्र की कहलाती है। कुरआन में इसे हजारों महीनों से अफजल बताया गया है। रमज़ान के आखिरी अशरा की 21, 23, 25, 27 व 29वीं रातों को शबे कद्र की रात बताया गया है। रोजा अल्लाह के आदेश का पालन करने और अनुशासित जीवन जीने के लिए प्रशिक्षित करता है।
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