सेराज अहमद कुरैशी
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
गाजी मस्जिद गाजी रौजा में मुफ्ती-ए-शहर अख्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि आशूरा मुहर्रम की रात खत्म हुई और दसवीं मुहर्रम सन् 61 हिजरी की कयामत नुमा सुबह नमूदार हुई। इमाम हुसैन के अहले बैत व जांनिसार एक-एक कर शहीद हो गए और दीन-ए-इस्लाम का परचम बुलंद कर गए।
गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर में मौलाना मोहम्मद अहमद निजामी ने कहा कि इमाम हुसैन के साथ मक्का शरीफ से इराक की जानिब सफर करने वालों में आपके तीन पुत्र हज़रत अली औसत (इमाम जैनुल आबेदीन), हज़रत अली अकबर, छह माह के हज़रत अली असगर शामिल थे। इमाम हुसैन के काफिले में कुल 91 लोग थे। जिसमें 19 अहले बैते (पैग़ंबरे इस्लाम के घर वाले) और अन्य 72 जांनिसार थे।
जामा मस्जिद रसूलपुर में मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अपनी औलाद को तीन बातें सिखाओ। अपने पैग़ंबर की उल्फत व मुहब्बत। अहले बैत (पैग़ंबरे इस्लाम के घर वाले) की उल्फत व मुहब्बत। क़ुरआने करीम की किरात। जब तक मुसलमानें के हाथों में क़ुरआन और अहले बैत का दामन रहा वह कभी गुमराह और रुसवा नहीं हुए बल्कि हमेशा फतह उनके कदम चूमती रही लेकिन जैसे ही मुसलमानों ने उन दोनों के दामन से दूरी बनाई हर जगह जिल्लत व रुसवाई उनके सामने आती चली गई। लिहाजा आज भी अगर हम क़ुरआन व अहले बैत से ताल्लुक जोड़ लें तो कामयाबी हमारे कदम चूमेगी।
बेलाल मस्जिद अलहदादपुर में कारी शराफत हुसैन कादरी ने कहा कि पैग़ंबरे इस्लाम ने इरशाद फरमाया कि अगर तुम हिदायत चाहते हो और गुमराही और जलालत से अपने आपको दूर रखना चाहते हो तो अहले बैत का दामन थाम लो। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान व तरक्की की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई।
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