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आज पूरी दुनिया इमाम हुसैन को याद कर रही है - उलमा किराम

मुहर्रम की दसवीं तारीख़ बहुत फजीलत वाली।

सैय्यद फरहान अहमद

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।

‘जिक्रे शोहदाए कर्बला’ महफिल के तहत मंगलवार को गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर में मौलाना मोहम्मद अहमद निजामी ने कहा कि मुहर्रम बरकत व अजमत वाला महीना है। मुहर्रम की 10वीं तारीख़ जिसे आशूरा कहा जाता है वह बहुत ही फजीलत वाली है। इसी दिन इमाम हुसैन व उनके साथियों को शहीद किया गया। तारीख़ गवाह है कि आज तक दुनिया में हजारों जंग हुईं। उन सारी जंगों को लोगों ने एकदम से भुला दिया मगर मैदाने कर्बला में हुई हक़ व बातिल की जंग रहती दुनिया तक याद रखी जाएगी। 

मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर में नायब काजी मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि अल्लाह की रज़ा के लिए अपने आपको और अपनी औलाद को कुर्बान करना और उस पर सब्र करना हज़रत इमाम हुसैन और उनके हौसले की ही बात थी। हज़रत इमाम हुसैन ने धर्म व सच्चाई की हिफाजत के लिए खुद व अपने परिवार को कुर्बान कर दिया, जो शहीद-ए-कर्बला की दास्तान में मौजूद है। हम सब को भी उनके बताए रास्ते पर चलने की जरूरत है।

गाजी मस्जिद गाजी रौजा में मुफ्ती-ए-शहर अख़्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि कर्बला की जंग मनसब नहीं इंसानियत की जंग थी। यही वजह है कि हज़रत इमाम हुसैन ने उस जंग में अपने पूरे खानदान को कुर्बान तो कर दिया मगर जालिम यजीद जो बातिल और बुराई का प्रतीक था, उससे समझौता नहीं किया। दुनिया में कोई ऐसा इंसान नहीं है जो अपने बच्चे, जवान और बुजुर्ग सभी को अल्लाह की रज़ा की खातिर कुर्बान कर दे। साथ ही साथ हर हाल में अल्लाह का शुक्र अदा करता रहे। हमें प्रण लेना चाहिए कि हम अपनी पूरी ज़िंदगी इमामे हुसैन के नक्शे कदम पर चलकर गुजारेंगे, तभी हमें कामयाबी मिलेगी। 

बेलाल मस्जिद इमामबाड़ा अलहदादपुर में कारी शराफत हुसैन कादरी ने कहा कि इमाम हुसैन की जंग हुकूमत हासिल करने के लिए नहीं बल्कि इंसानों को सही रास्ते पर लाने के लिए थी। हज़रत इमाम हुसैन की अजमतों को लाखों सलाम जान तो कुर्बान कर दी लेकिन रूहे इस्लाम बचा ली। 

मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने कहा कि इमाम हुसैन व उनके जांनिसारों ने कर्बला की तपती रेत पर भूखे प्यासे रहकर अज़ीम कुर्बानियां पेश की। 10वीं मुहर्रम (आशूरा) के दिन रोज़ा रखना, सदका करना, नफ़्ल नमाज पढ़ना, एक हजार मर्तबा सूरह इख्लास पढ़ना, यतीमों के सर पर हाथ रखना, घर वालों के लिए अच्छा खाना बनवाना, सुर्मा लगाना, गुस्ल करना, नाखून तराशना और मरीजों की बीमार पुर्सी करना, इमाम हुसैन व कर्बला के शहीदों के लिए फातिहा-नियाज करना अच्छा काम है। खिचड़ा और सबीले इमाम हुसैन वगैरा बांटने में सवाबे खैर है। दसवीं मुहर्रम को गुस्ल करें, क्योंकि उस रोज ज़मज़म का पानी तमाम पानियों में पहुंचता है। 

रसूलपुर जामा मस्जिद में मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ‘खुतबा हज्जतुल विदा’ में फरमाया है कि ऐ लोगों मैंने तुममें वह चीज छोड़ी है कि जब तक तुम उनको थामें रहोगे, गुमराह न होगे। पहली चीज ‘अल्लाह की किताब’ और दूसरी ‘मेरे अहले बैत’। 

नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना असलम ने कहा कि इमाम हुसैन दीन-ए-इस्लाम को बचाने के लिए शहीद हुए। इमाम हुसैन ने कर्बला में शहादत देकर बता दिया कि जुल्म दीन-ए-इस्लाम का हिस्सा नहीं है।

सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर में मौलाना अली अहमद ने कहा कि इमाम हुसैन का मकसद दुनिया को दिखाना था कि अगर इंसान सच्चाई की राह पर साबित कदम रहे और सहनशीलता का दामन न छोड़े तो उसे कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है। आज इमाम हुसैन को पूरी दुनिया याद कर रही है। 

मुकीम शाह जामा बुलाकीपुर में मौलाना फिरोज निजामी ने कहा कि हज़रत इमाम हुसैन के पुत्र इमाम ज़ैनुल आबेदीन जो कर्बला के मैदान में बीमारी की हालत में मौजूद थे, उन्होंने कर्बला में तमाम शहादतों के बाद वहां से शाम तक के सफर में अपने खुतबों से हज़रत इमाम हुसैन के मिशन को आगे बढ़ाया। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई।

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Jr. Seraj Ahmad Quraishi
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