मुर्तुजा हुसैन रहमानी
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
शीश महल दरगाह, जाफरा बाजार गोरखपुर उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। हज़रत सैयद गाज़ी मोमिन शीश अली शाह रहमतुल्लाह अलैह शीश महल गोरखपुर शहर के जाफरा बाजार में स्थित है और इसकी अपनी एक विशेष महत्ता है।
*तेरे दर पे आना मेरा काम है*
*मेरी किस्मत जगाना तेरा काम है*
*मेरी आंखों को है दीदी की आरज़ू*
*अब रूख से पर्दा उठाना तेरा का है*
यहां कुछ विशेष जानकारी दी जा रही है:
1. यहां सदियों से जायरीन आते हैं : शीश महल दरगाह का की खासियत है कि हज़रत की मजार पर जियारत करने से सफेद दाग से निजात मिलता है।
2. धार्मिक महत्व: यहां पर गूंगे बोलने लगे, चल पाने में माजूर चलने लगे। शै, बला,किया कराया से शिफा मिलता है। गंभीर बीमारी से निजात मिलना। शीश महल दरगाह मुस्लिम समुदाय के लिए एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जहां लोग अपनी श्रद्धा और सम्मान के साथ आते हैं।
3. एक्के की मशहूर कहानी: अंग्रेजी हुकूमत के दौरान शीश अली शाह अपने मजार शरीफ से निकलकर शहर के प्रमुख मजारों की जियारत करते थे। वापस लौटने पर घंटाघर स्थित पतजुग का पेड़ हुआ करता था, वहां पर एक्का रूकता था, हज़रत उस दौर के मकबूल व मशहूर हलवाई मानक चंद की दुकान से दो खोमचे में मिठाई लेकर चल दिया करते थे। इस मिठाई को हज़रत शीश अली शाह अपने दरगाह के करीब झाड़ियों में एक्केवान से सुपुर्द करने को कहा करते थे। एक्केवान उल्फत अली से झाड़ में रखवा दिया करते थे। जहां मौजूद उनके लश्कर व जिन्नों जिन्नत ले लिया करते थे। बुजुर्गों का कहना था कि रात में बहुत से अल्लाह वली मानक चंद हलवाई से मिठाई खरीदते थे। यह वाक्या सन् 1819 की बताई जाती है। एक्केवान मरहूम उल्फत अली का परिवार आज भी बेनीगंज ईदगाह के पूर्वी गेट की उत्तर जानिब मौजूद है।
4. हज़रत की आकृति : हज़रत सैयद गाज़ी मोमिन शीश अली शाह की आकृति अमडे के पेड़ पर उभर आयी थी। जिसको देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। यह वाक्या सन् 2007 का है। इस वाक्या को प्रमुख समाचार पत्रों और चैनलों के माध्यम से खूब प्रसारित और प्रचारित हुआ। इस दर से आज तक कोई मायूस और खाली हाथ नहीं लौटा है, बल्कि अपनी जायज तमन्नाओं और मुरादों को पाया है। यह स्थल सौहार्द और हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है।
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