रिपोर्ट: अब्दुल नईम कुरैशी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश।
भारतीय लोकतंत्र की नींव माने जाने वाले चुनाव आयोग की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर इन दिनों तीखे सवाल उठ रहे हैं। यह सवाल और गहरा तब हुआ जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में देश की मतदाता सूची, फर्जीवाड़े और चुनावी प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं से जुड़े डिजिटल दस्तावेज और आंकड़ों को सार्वजनिक किया।
चुनाव आयोग का काम या सवालों के घेरे में?
भारतीय संविधान के अनुसार, चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संस्था है, जिसका कार्य किसी भी सरकार या दल से प्रभावित हुए बिना निष्पक्ष चुनाव कराना, मतदाता सूची को अद्यतन और शुद्ध बनाए रखना तथा संपूर्ण मतदान और मतगणना प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करना होता है।
लेकिन हाल के वर्षों में कुछ ऐसे सरकारी फैसले लिए गए हैं, जिन्होंने आयोग की निष्पक्षता पर सवालिया निशान लगा दिए हैं:
? सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति समिति से मुख्य न्यायाधीश को हटाया गया, और उसकी जगह सरकार बहुमत से निर्णय लेने वाली समिति बनाई गई।
? चुनाव से संबंधित डिजिटल दस्तावेजों को सार्वजनिक करने पर रोक लगा दी गई।
? चुनाव संबंधित डेटा और साक्ष्य को मात्र 45 दिनों में नष्ट करने का नियम बना दिया गया।
विशेषज्ञों के अनुसार, ये सभी बदलाव चुनाव आयोग को सरकार के प्रभाव में लाने की दिशा में खतरनाक कदम हैं।
राहुल गांधी ने पेश किए साक्ष्य
राहुल गांधी ने हाल ही में एक प्रेस वार्ता के दौरान ऐसे दस्तावेज और तथ्यों को सामने रखा जिनसे यह प्रतीत होता है कि:
वोटर लिस्ट में बड़ी संख्या में डुप्लीकेट नाम दर्ज हैं।
एक व्यक्ति के नाम पर एक से अधिक जगहों पर वोट दर्ज हैं।
फर्जी पते के आधार पर हज़ारों वोट बनाए गए हैं।
राहुल गांधी ने स्पष्ट कहा कि "ये काम चुनाव आयोग का है, लेकिन अब मुझे करना पड़ रहा है ताकि इस देश का लोकतंत्र सलामत रह सके।"
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी से मांगा शपथपत्र
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि चुनाव आयोग ने इन खुलासों पर कार्रवाई करने की बजाय, उल्टे राहुल गांधी से शपथपत्र की मांग कर डाली। आयोग की इस प्रतिक्रिया को लेकर विपक्ष, बुद्धिजीवी वर्ग और चुनावी सुधार कार्यकर्ताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
क्या वाकई चुनाव आयोग सत्ता के अधीन हो गया है?
अब देश में यह बहस तेज हो गई है कि क्या चुनाव आयोग अपनी स्वतंत्र पहचान खो रहा है? क्या वह सत्ता पक्ष की सुविधा के अनुरूप निर्णय ले रहा है?
कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने इसे लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी करार दिया है। उनका कहना है कि "अगर चुनाव आयोग ही निष्पक्ष नहीं रहेगा, तो लोकतंत्र की सबसे बड़ी प्रक्रिया — चुनाव — ही एक तमाशा बनकर रह जाएगी।"
निष्कर्ष
राहुल गांधी द्वारा प्रस्तुत तथ्यों और चुनाव आयोग की हालिया नीतियों ने देश में लोकतांत्रिक संस्थाओं की निष्पक्षता पर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। यदि यह क्रम यूं ही चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जनता का विश्वास इन संस्थाओं से उठ जाएगा।
? अब देखना यह होगा कि चुनाव आयोग इस पर अपनी विश्वसनीयता कैसे बहाल करता है – या फिर इतिहास यह दर्ज करेगा कि एक विपक्षी नेता को संविधान की रक्षा के लिए चुनाव आयोग का काम करना पड़ा।
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