सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
सुब्हानिया जामा मस्जिद तकिया कवलदह के इमाम मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने बताया कि रमज़ान के इस मुकद्दस महीने में कुरआन-ए-पाक नाजिल (उतरा) हुआ। कुरआन-ए-पाक का पढ़ना देखना, छूना, सुनना सब इबादत में शामिल है। कुरआन-ए-पाक पूरी दुनिया के लिए हिदायत है। हमें कुरआन-ए-पाक के मुताबिक बताए उसूलों पर ज़िदंगी गुजारनी चाहिए। अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कुरआन-ए-पाक 23 साल में नाजिल हुआ। कुरआन-ए-पाक पर अमल करके ही पूरी दुनिया में अमन और शांति कायम की जा सकती है। पूरा कुरआन-ए-पाक एक दफा इकट्ठा नहीं नाजिल हुआ बल्कि जरूरत के मुताबिक 23 वर्षों में थोड़ा-थोड़ा नाजिल हुआ। क़ुरआन-ए-पाक के किसी एक हर्फ लफ्ज़ या नुक्ते को बदलना मुमकिन नहीं। अगली किताबें नबियों को ही ज़बानी याद होती थी लेकिन कुरआन-ए-पाक का यह मोजजा है कि मुसलमानों का बच्चा-बच्चा उसको याद कर लेता है। माह-ए-रमजान में हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर सहीफे 3 तारीख़ को उतारे गए। हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम को जबूर 18 या 21 रमज़ान को मिली और हजरत मूसा अलैहिस्सलाम को तौरेत 6 रमज़ान को मिली। हजरत ईसा अलैहिस्सलाम को इंजील 12 रमज़ान को मिली।
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