गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
जिला अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में कार्यरत मोहम्मद फैजान ने बताया कि इस्लाम धर्म में अक्सर आमाल किसी न किसी रूह परवर वाक्या की याद ताजा करता है। रोजा पिछली उम्मतों में भी था। मगर उसकी सूरत हमारे रोजों से जुदा थी। विभिन्न रवायतों से पता चलता है कि हजरत आदम अलैहिस्सलाम हर माह 13, 14, 15 को रोजा रखते थे। हजरत नूह अलैहिस्सलाम हमेशा रोजेदार रहते थे। हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम एक दिन छोड़कर एक रोजा रखते थे। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम एक दिन रोजा रखते और दो दिन न रखते थे। रमजान के महीने में की गई अल्लाह की इबादत बहुत असरदार होती है। इसमें खान-पान सहित अन्य दुनियादारी की आदतों पर आदमी संयम करता है। आदमी अपने शरीर को वश में रखता है साथ ही तरावीह और नमाज़ पढ़ने से बार-बार अल्लाह का जिक्र होता रहता है जिसके द्वारा इंसान की रूह पाक-साफ होती है।
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