ब्यूरो चीफ़ हफ़ीज अहमद खान
कानपुर, उत्तर प्रदेश।
श्री रामचरितमानस राम के जीवन पर आधारित महाकाव्य है तुलसीदास जी ने इसकी रचना लोक कल्याण एवं स्वांता सुखाय को दृष्टि में रखकर की है उनकी मान्यता है कि राम उसी के हृदय में निवास करते हैं जो नैतिक मूल्यों का समर्थक एवं सदाचारी हो काम क्रोध लोभ मोह दंभ से रहित हो दूसरे की विपत्ति में दुखी रहने वाले तथा दूसरे की प्रसन्नता में सुखी रहने वाले व्यक्ति के हृदय में ही ईश्वर निवास करते हैं गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस में कहां है काम क्रोध मद मान न मोहा, लोभ न छोभ ना राग न द्रोहा, जिनके कपट दंभ नहीं आया,जिनके हृदय बसे रघुराया ।
योग गुरु ज्योति बाबा ने कहीं,ज्योति बाबा ने आगे कहा कि जिस समय तुलसी का प्रादुर्भाव हुआ उस समय समाज में विषमता व्याप्त थी ऊंच नीच का भेदभाव ब्राह्मण शुद्र का भेदभाव तो था ही साथ ही निर्गुण सगुण का संघर्ष, शैव वैष्णो का संघर्ष ,ज्ञान भक्ति का संघर्ष अपनी चरम सीमा पर था, गोस्वामी तुलसीदास ने दार्शनिक क्षेत्र में समन्वय का प्रयास करने के लिए रामचरितमानस में कई प्रसंग कल्पित कर लिए हैं रामचरितमानस में तुलसी की भक्ति दास्य स्वभाव की है वे स्वयं को सेवक और प्रभु श्री राम को अपना स्वामी मानते हैं तथा उनके चरणों में निरंतर रत रहने का वरदान मांगते हैं अंत में सभी ने एक स्वर में ऐसे निशाचर सोच वाले सपा के तथाकथित सज्जन पुरुष,जो पूर्व में संवैधानिक पदों पर रह चुके हैं उन पर कानूनी आधार पर कठोर कार्रवाई करने की मांग सरकार से की है।
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